शनिवार, 14 जून 2008

स्तनों में दूध बढ़ाने के उपाय


गर्भवती महिलाओं को। खासकर जो पहली बार गर्भवती हुई हैं, चौथे-पाँचवे महीने से ही अपने स्तनों की देखभाल प्रारम्भ कर देनी चाहिए, क्योंकि यदि कुचों व चूचुकों में कोी नुक्स है, तो प्रसूता होने से पूर्व ही ठीक किया जा सकता है। प्रसव के बाद इस दोष को ठीक करना कठिन हो जाता है। गर्भवती महिलाओं के स्तनों का आकार बढ़ जाता है, क्योंकि इसके अन्दर दुग्ध उत्पन्न करने की तैयारी होन लगती है। तीसरे महीने के आसपास चुचूकों मे से फीके दुधिया रंग का पानी निकलने लगता है। अगर इस द्रव्य को साफ न किया जाए, तो यह सूख जाता है और चूचुकों के छिद्रों को बन्द कर देता है। प्रायः इस जमे हुए स्त्राव में रोग उत्पादक जीवाणु पैदा होकर कुचों में खुजली व जलन पैदा कर देते हैं। इसलिए गर्भवतियों को चाहिए कि स्नान के समय कुचों को भलीभांति साफ कर लिया करें।

वैसे तो जो नवयुतियाँ या नवविवाहिता साधारण दिनों में अपने स्वास्थ्य के प्रति विशेष ध्यान रखती हैं, तथा स्तन सौंदर्य बरकरार रखने संबंधी सहायक व्यायाम करती रहती हैं उनके स्तन पूर्णतः विकसित हो जाते हैं। यदि व्यायाम करते रहने के बावजूद संतन अविकसित अथवा अर्द्धविकसित बने रहें, तो भली-भाँति विकसित करने के लिए अन्य उपाय भी करने चाहिए। इसके लिए “ब्रैस्ट पम्प एवं निप्पल शील्ड” की सहायता ली जा सकती है।

बच्चे का सबसे पहला और गहरा सम्बन्ध उसकी माता के साथ पड़ता है। जन्म लेने के बाद बच्चा सबसे पहले अपनी माता के स्तनों के सम्पर्क में आता है। चूँकि इन्हीं माध्यमों से वह मां का दूध पीता है, इसलिए उसे स्तनों से बड़ा लगाव रहता है्। नन्हा-मुन्ना जब माँ का दूध पीता है, तब बारम्बार स्तनों के देखता भी है। उस समय उसे अपने शरीर की तुलना में माँ के स्तन बहुत भारी व विशालकाय दिखाई देते हैं। काफी बड़े और उन्नत उरोजों को देखकर उसकी आँखों को बड़ी तृप्ति मिलती है। स्तनपान का सबसे अधिक और स्थायी लाभ यह होता है कि बच्चा बहुत जल्दी यह समझने लगता है कि वह अपने भोजन के लिए अपनी माता पर निर्भर है। वह उसे बड़े प्रेम की दृष्टि से देखने लगता है। जब भी उसकी माँ उसके सामने आती है, उसकाचेहरा प्रसन्ननता से खिल उठता है। अतिशीघ्र माता और बच्चे के बीच एक लगाव, अपनापन तथा ममत्व स्थापित हो जाता है।

जब बच्चे की माता दूध नहीं पिलाएगी, तब बच्चा माता को किस रूप में पहचानेगा ? उसके लिए जिस तरह अन्य पारिवारिक सदस्य हैं, ुसी तरह उसकी माता भी सामान्य व्यक्ति के रूप में उसके सामने आती है। फलतः बच्चे का माता के प्रति स्वाभाविक लगाव नहीं रहता । इसका दुष्परिणाम यह होता है कि माता-पिता अपनी संतानों के लिए, संतानों के लाड़-प्यार के लिए तरसते रहते हैं। इसलिए स्वाभाविक प्रेम व ममता के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि माता अपने बच्चे को अपना ही दूध पिलाये।

जन्म के तुरन्त बाद शिश तथा माता जितना अधिक पास रहेंगे उनका आपसी लगाव उतना ही प्रगाढ़ हो जाएगा। स्तनपान से शिश व माता का लगाव अपेक्षाकृत अधिक पुष्ट हो जाता है, भावनात्मक बन्धन सुदृढ़ होता है। मातृत्व का अनूठा उपहार अमृततुल्य स्तनपान करा सकने मे सक्षम प्रत्येक महिला को अपनी क्षमता में विश्वास रखते हुए नव-जीवन प्रारम्भ कर रहे अपने बच्चे को उसके जन्मसिद्ध अधिकार से कदापि वंचित नहीं करना चाहिए।

जन्म के बाद एक घंटे तक नवजात शिशु में स्तनपान करने की तीव्र इच्छा होती है। बाद में उसे नींद आने लगती है। इसलिए जन्म के बाद जितनी जल्दी माँ बच्चे को दूध पिलाना शुरू कर दे, उतना ही अच्छा है। आमतौर पर जन्म के 45 मिनट के अन्दर स्वस्थ बच्चों को स्तनपान शुरू करवा देना चाहिए। शल्य-चिकित्सा द्वारा उत्पन्न हुए बच्चों से भी माता पर बेहोशी की दवा का असर समाप्त होते ही स्तनपान शुरू करवा देना चाहिए। जन्म के तुरन्त बाद बच्चों को माँ का दूध पिलाने से स्तनपान की सफलता तथा उसकी अवधि बढ़ जाती है। स्तनपान की सफलता में शुरू के कुछ दिनों के प्रयास का बहुत बड़ा योगदान रहता है।

चिकिस्ता विज्ञान के पास ऐसे अनेक प्रमाण मौजूद हैं, जिनमें से एक उदाहरण यह है कि “मेरे स्तनों में भी दूध उत्पन्न होने लग जाए” ऐसे दृढ़ संकल्प मात्र से की ऐसी महिलाओं, के स्तनों से भी दूध निकलने लगा, जिन्होंने दो-दो चार-चार बच्चों को अपना दूध नहीं पिलाया था, उनके स्तनों से भी दूध निकलने लगा । मानसिक तैयारी और दृढ़ इच्छा शक्ति स्तनपान की पहली दो आवश्यकताएँ हैं। तदुपरान्त अपनी योग्यता पर विश्वास होना सफलता के लिए अगला कदम है। प्रकृति ने हर एक महिला को स्तनपान के लिए समर्थ बनाया है तथा ऐसा कोई कारम नहीं कि वह इस दायित्व को सफलतापूर्वक न निभा सके। स्तनपान की विफलता का सबसे प्रमुख कारण अपनी योग्यता पर संदेह करना और दूध न आने की संभावना मात्र को लेकर उत्पन्न मानसिक तनाव है।

जो माताएँ शान्त व सन्तुष्ट रहती हैं या लाड़-प्यार के साथ अपने बच्चे को अपना दूध पिलाती हैं, उनके स्तनों में दूध भी अधिक उत्पन्न होता है। जो माताएँ बच्चे को बारम्बार छाती से लगाकर अपना दूध पिलाती रहती हैं, उनके स्तनों को चूसने की क्रिया से पीयूष ग्रन्थि को उद्दीपन अधिक मिलते रहने के कारण दूध भी अधिक उत्पन्न होता है। दूध का स्त्राव बढ़ाने का आज तक का ज्ञात सबसे सशक्त उपाय बच्चे का चूचुकों को चूसना है। बच्चे द्वारा माँ का दूध पिये जाने से रिफ्लेक्स सक्रिय होते हैं, जिससे दूध की मात्रा तथा प्रवाह दोनों बढ़ते हैं।

प्रसूता को चाहिए कि वह प्रसव के 45 मिनट के अन्दर एकान्त व शान्त कमरे में अपने नवजात शिशु को बगैर कोई कपड़े पहिनाए अपने वक्षस्थल से लगाए, उसे दुलारे और उसके मुँह में अपना स्तन दे । ऐसा करने से शीघ्रतिशीघ्र स्तन में दूध स्थापित हो जाता है। प्रारम्भिक कुछ दिनों में उत्पन्न कम दूध भी बच्चे की आवश्यकता पूर्ण करने में समर्थ रहता है। उसे अतिरिक्त दूध की आवश्यकता नहीं होती। धीरे-धीरे बच्चे की आवश्यकतानुसार दुध की मात्रा भी बढ़ने लगती है।

साधारणतया प्रारम्भिक चरण में प्रसूता को तीन-तीन, चार-चार घण्टे में नियमित रूप से अपने नवजात शिशु को दुध पिलाना चाहिए। कई माताएँ बच्चे को दिन में इतनी बार दूध पिलाना अपने लिए एक बोझ समझती हैं। उनकी इस अमानवीय विचारधारा मात्र के कारण भी दूध पिलाने के लिए नियत समय पर माता को अपना दूध हाथ से निकाल देना चाहिए, अन्यथा दूध घटना शुरू हो जाएगा।

यदि किसी माता को कोई आर्थिक व घर-गृहस्थी संबंधी चिन्ता बराबर बनी रहती है अथवा झगड़ा झंझट या पारिवारिक कलह बने रहने के कारण वह हर समय परेशान, चिड़चिड़ी और उत्तेजित रहती है, तो उसके अंग-प्रत्यंगों में स्थायी रूप से तना बना रहता है। फलतः स्तनों में दूध की मात्रा क्रमशः कम होती जाती है। प्रायः ऐसी माताओं का दूध समय से पहले ही सूख जाता है। चाहे जैसी भी स्थिति हो, जब तक दूध आना पूर्णतः बन्द न हो जाए, तब तक दूध उत्पन्न करने वाली विभिन्न बाजारू औषधियों का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए।

2 टिप्‍पणियां:

gopal verma ने कहा…

jab doodh adhik badh jaye to kya pati us doodh ko pi sakta hai ...agar ha to kis tarike se...?

Unknown ने कहा…

45 दिन हो गये मॉ को दुध बहुत ही कम आ रहा हे इससे बचे का पेट भी नही भर पा रहा हे
अब कोई ऊपाई बताय्