शनिवार, 14 जून 2008

स्तन-पान सम्बन्धी विभिन्न क्रिया-कलाप



(1) दोनों स्तनों से क्रमानुसार दूध पिलाएँ
हमेशा ध्यान में सखने लायक बात यह है कि स्तनों को पूर्मतः दूग्धशून्य करने से दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है। यदि माता को इतनी मात्रा में दूध उतरता है कि एक समय में एक ही स्तन से बच्चा पेट भर सकता है तो एक बार में एक ही स्तन से दूध पिलाना चाहिए । यदि पहली खुराक के समय बाँये स्तन में पिलाया है तो दूसरी खुराक के समय दाहिने स्तन से पिलाना चाहिए। यह सामान्य नियम है, क्योंकि एक स्तन जोपूरी तरह से दुग्धशून्य हो जाता है, उसे दुबारा दुग्धपूर्ण होन में लगभग आठ घंटे का समय लग जाता है, इसलिए साधारणतया सात पौण्ड वाले पूर्णतः स्वस्थ व हूष्ट-पुष्ट बच्चे को प्रत्येक चार-चार घंटे में दूध पिलाते रहना चाहिए। लेकिन यदि बच्चे का वजन छः पौण्ड या इससे कम है तो उसे तीन-तीन घण्टे के अन्तर से खुराक देनी चाहिए।

यदि एक समय में एक स्तन का दूध पूरा नहीं पड़ता है तो दूसरे स्तन का दूध भी पिलाना चाहिए। इस स्थिति में भी क्रमानुसार यदि माता ने पहले बाँया स्तन खाली किया है, तदुपरान्त दाहिना स्तन तो अगली बार दूध पिलाने की शुरुआत दाहिने स्तने से करनी चाहिए और यदि माता ने पहले दाहिना स्तन खाली किया है, तत्पश्चात् बाँये स्तन आधा काली किया है, तो अगली बार दूध पिलाने की शुरुआत बाँये स्तन से करनी चाहिए।

(2) नियमित रूप से दूध पिलाएँ
दूध पिलाने का क्रम नियमित करना अथवा दूध पिलाने के लिए समय नियत करना नितान्त आवश्यक है। जब बच्चा पूर्व निर्धारित समय पर दूध लेने का अभ्यासी हो जाता है, तो एक तो प्रारम्भिक चरण में ही उसमें अनुशासन की नींव पड़ती है और दूसरे, माता को घरेलू तथा शिशु संबंधी अन्य काम-धन्धों को निबटाने का समय मिल जाता है। इसलिए माता को अपनी सुविधानुसार वक्त का चुनाव करना चाहिए।

दूध पिलाने की समय-सारणी एकाएक निर्धारित नहीं हो सकती। प्रारम्भिक दौर में यह अटपटा और अनियमित ही चलता रहता है। ऐसा होना स्वाभाविक है, लेकिन फिर भी क्रमशः धीरे-धीरे प्रयास जारी रखने से कुछ दिनों के अन्तराल में माता व बच्चा दोनों ही समय के पाबन्द हो जाते हैं। खुराक देने का समय निश्चित करने में मता को अपने साथ-साथ बच्चे की सुविधा का भी ध्यान रखना चाहिए, लेकिन अन्तर बच्चे की उम्र के हिसाब से तीन-तीन खथवा चार-चार घण्टे का ही निभाना चाहिए। जैसे-दिन-रात 6-9-12-3-7-10-1-4,8-11-2-5-9-12-3-6 अथवा 6-102,7-11-3,8-12-4-,9-1-5 बजे।

इसके अलावा बच्चा जब भी रोए, दूध नहीं पिलाना चाहिए। बच्चे का रोना चाहे रात का हो या दिन का, और भी अनेक कारणों से हो सकता है जिसका प्रयत्नपूर्वक पता लगाकर तदनुसार उपाय करना चाहिए। सामान्य सी बात है कि जो बच्चा थोड़ी ही देर पूर्व भर पेट दूध पी चुका है, वह दूध अभी हजम नहीं हुआ है और वह भूख के कारण नहीं रो रहा है।

(3) कितनी देर तक स्तनपान कराना चाहिए
बच्चे को कितनी देर तक दूध पिलाना चाहिए, यह इस बार पर निर्भर करता है कि बच्चे के दूध पीने की गति कितनी है, वह कितने समय में भरपेट दूध पी लेता है, उधर माता के स्तनों में से दूध उतरने की रफ्तार कितनी है, उसके स्तनों में दुग्ध भण्डार की क्या स्थिति है, आदि-आदि । वस्तुतः इस सम्बन्ध में सभी माताओं और सभी बच्चों के लिए एक ही कठोर तथा अपरिवर्तनीय नियम लागू नहीं किया जा सकता। कुछ बच्चे यदि एक बार स्तन मुंह में गया, तो निरन्तर पेट पूरा भरकर ही दम लेते हैं। कुछ बीच में रुक-रुककर आराम से पेट भरते हैं। इसके अलावा दूध पिलाने के समय को बच्चे की उम्र भी प्रभावित करती है। आमतौर पर यह समय 10से30 मिनट का होना चाहिए। अधिक से अधिक 40 मिनट तक। इससे अधिक समय बिल्कुल नही देना चाहिए। कुछ बच्चे पेट भर जाने के बावजूद स्तन चूसते रहना चाहते हैं। यद्यपि उन्हें स्तनों से दूध नहीं मिलता, लेकिन फिर भी उन्हें स्तन चूसने में आनन्द आता है। उनकी इस बुरी आदत को कभी भी प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। वैसे माता को धीरे-धीरे स्वयं य हनुमान हो जाता है कि बच्चे को कितनी देर में पेट भरने लायक दूध मिल जाता है। भरपेट दूध पीते ही बच्चे के मुंह से स्तन छुड़ा लेना चाहिए।
(4) स्तनपान कब तक कराना चाहिए
बच्चे को कितनी उम्र स्तनपान कराना चाहिए, यह बच्चे की वृद्धि,तन्दुरुस्ती और विकास, माता का स्वास्थ्य, स्तनों की क्षमता, अपलब्धि और गुणवत्ता इत्यादि बातों पर आधारित है। फिर भी सामान्य परिस्थितियों में आठ-दस माह तक बच्चों को स्तनपान कराना चाहिए। स्तनपान छुड़ाने का यही जीवन-काल अनुकूल तथा उत्तम है। इसके बाद उसके पोषण-आहार की आवश्यकताएँ क्रमशः बढ़ती हैं और माता के स्तनों में दूध की मात्रा घटती है। इसलिए अब स्तनपान जारी रखना निरर्थक सिद्ध होता है। इसके बाद उसे उपलब्धतानुसार क्रमशः शुद्ध बकरी का दूध, गाय का दूध, भैंस का दूध, फिर ताजे व मौसमी फल, तदुपरान्त हल्का-फुल्का भोजन, तत्पश्चात् पूर्ण-आहार देना चाहिए।

(5) स्तनपान कैसे छुड़ाएँ
की माताएँ कोई साधारण –सा बहाना करके किसी का परामर्श लिए बिना स्तनपान छुड़ाने में अति शीघ्रता कर लेती हैं। फलतः बच्चा प्राकृतिक आहार से वंचित हो जाता है। किसी भी माता को अपनी सुख-सुविधा व शांति के लिए अपने शिशु को प्राकृतिक आहार से वंचित नहीं करना चाहिए और न ही अन्य दूध तैयार करने के झंझट से बचने के लिए चार-चार पाँच-पाँच वरष तक दूध पिलाते ही रहना चाहिए। जिस प्रकार स्तनपान नहीं कराने से बच्चे के व्यक्तित्व पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता, उसी प्रकार अपेक्षाकृत काफी लम्बे समय तक स्तनपान कराते रहने से भी बच्चे के व्यक्तित्व पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता । की बार अनेक ऐसी परिश्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं कि दूध छुड़ाने की शीघ्र आवश्यकता पड़ जाती है, जैसे-माता की मृत्यु, पुनः गर्भधारण इत्यादि अनेक ऐसी विकट परिस्थितियाँ हैं, जिनके कारण स्तनपान छुड़ाने के लिए बाधित हो जाना पड़ता है।

एकाएक दूध छुड़ाने पर माता के लिए तत्काल दूध बन्द करना अत्यन्त कठिन हो जाता है। इससे माताएँ अस्वस्थ भी हो सकती हैं। स्तनपान छुड़ान लिए माताएँ कभी-कभी अपने चूचुकों में अत्यन्त खारे, तीखे व कड़वे पदार्थों का लेपन कर लेती हैं। इससे कुछ बच्चे माँ का दूध भी छोड़ देते हैं और अन्य दूध से भी उन्हें घृणा होने लगती है। ऊपर से वे समय पर भोजन (पूर्ण आहार) भी नहीं पचा सकते । इसके विपरित कुछ बच्चे ऐसे ढीठ, भी होते हैं कि वे कड़वा-मीठा खारा तीखा सब कुछ साथ ही पी जाते हैं। दोनों ही स्थितियों में बच्चे का स्वास्थ्य बिगड़ जाने की संभावनाएँ बनी रहती हैं। इस कष्टप्रद विधि को व्यवहार में लाए बिना भी बहुत आसानी से स्तनपान छुड़ाया जा सकता है।

बच्चे की सर्वप्रथम प्रेयसी उसीक अपनी माता है। उसे सबसे पहले प्रेम उसके स्तनों से होता है, जिनसे वह बहुत आनन्दित होता है। बच्चा स्तनों से केवल आहार ही प्राप्त नहीं करता,वह उन्हें चूसने में आनन्द भी प्राप्त करता है। प्रायः बच्चे भरपेट दूध पी लेने के बावजूद अपनी माता के स्तनों से खेलते रहना चाहते हैं। इसलिए माता को भी स्तनपान कराना एक नीरस कर्तव्य मात्र नहीं समझना चाहिए। उसे बड़ी रुचि, प्यार व लगाव के साथ बच्चे को दूध पिलाना चाहिए या फिर यों कहें कि उसकी अत्यन्त प्रियवस्तु उसे बड़े शौक व सम्मान के साथ देनी चाहिए। दूध छुड़ाने से बच्चे की यह प्यारी चीज उससे छिन जाती है। जिन बच्चों को अपनी माता के स्तनों स सम्पूर्णनन्द प्राप्त करने का अवसर नहीं मिलता वे अंगूठा चूसने की आदत बना लेते हैं र अज्ञानतावश सी से आनन्दित होते हैं। यदि बच्चे से माता के स्तन समझकर उसी से संतोष प्राप्त करना पड़ता है। स्तन-अग्र और अंगूठा दोनों को वह एक दूसरे का पर्याय समझता है। यह भावना बच्चे के अन्तस में सदा के लिए समा जाती है। इसलिए यदि बच्चा अंगूठा चूसता रहे, तो एक स्थायी चस्के से वंचित न रखा जाय। बलपूर्वक उसमें मुँह से अंगूठा निकालकर उसके हार्दिक दुःख को दुगुना न करें। उसके लिए उसके मन बहलाने की सामग्री जुटाएँ।

जब बच्चे से उसकी माता की छाती छीन ली जाती है तो वह समझता है किउसकी माता ही उससे छीन ली गई है, क्योंकि वह अपने जन्म के समय से ही माता और वक्षस्थल को एक ही चीज समझता आया है। इसलिए स्तनपान छुड़ाने के दिनों में उसके लिए माता के स्न्नेह की अधिक आवश्यकता होती है। इस कारण स्तनपान इतने प्यार से, इतने धीरे-धीरे और इतनी मेहनत के साथ छुड़ाया जाय कि बच्चे के दिल में सदा के लिए निराशा का भाव जड़ न जमा ले। स्तनपान छड़ाने का उद्देश्य केवल यही नही होना चाहिए कि उसे किसी एक वस्तु से पृथक कर दिया जाए, बल्कि बच्चे के मन में बड़े लाड़ और प्यार से किसी अन्य वस्तु के प्रति लगाव भी पैदा कर देना चाहिए।

यद्यपि बच्चा उत्पन्न होन के दिन से ही स्तनपान करता है तथापि उसे दो चार महीने बाद से ही ग्लूकोज, पानी आदि बोतल के माध्यम से पिलाना चाहिए और चार-छः महीने बाद फलो का रस विभिन्न रंग-बिरंगे एवं आकार-प्रकार के कप-प्याले व गिलास के माध्यम से पिलाना चाहिए ताकि उसे स्तनपान के अलावा कुछ और भी पीने की आदत पड़ जाए। संभव है कि बच्चे को कोई बोतल ही प्यारी लगने लगे, कोई सुन्दर गिलास ही उसे भा जाए, किसी रंगीन प्याली को ही वह पसन्द करने लगे और बच्चा हँसते-खेलते क्रमशः पानी, ग्लूकोज, विभिन्न फलों का रस एवं अन्य शुद्ध दूध भी पी जाए। स्तनपान छुड़ाना भी एक कला है । बच्चे के व्यक्तित्व सम्बन्धी अनेक गुण-दोष इस बात से संबंधित होते हैं। पूर्णतः सफलतापूर्वक स्तनपान छुड़ाने मात्र स हम बच्चे को स्वावलम्बन के मार्ग पर चलना सिखाते हैं। बच्चा कितनी प्रसन्न के साथ इस मार्ग पर चलता है यह हमारी बुद्धिमत्ता और हमारे परिश्रम पर निर्भर है।

दूध उतारने की युक्ति
आमतौर पर प्रसूता के स्तनों से ही दूध उतरता है और वह भी प्रसव के बाद लगभग साल भर तक। कभी-कभी दादी और नानी को भी अपने पौत्र और दौहित्र को स्तनपान कराते देखा अथवा सुना गया है। इतना ही नहीं, अविवाहित नव-युवतियों के भी दूध उतरने के अनेक दृष्टान्त सुने गये है। यद्यपि ऐसे दृष्टान्त बहुत ही कम हैं, पर हैं जरूर। इससे भी अधिक अनेक विचित्र किन्तु सत्य प्रमाण चिकित्सा विज्ञान के पास मौजूद हैं, जिनमें से एक यह है कि डॉक्कटर हम्बोल्ट के अनुसार-एक चालिस वर्षीय अफ्रीकन हब्शी पुरुष ने कई बार अपने बच्चोंको कई मास तक अपना दूध पिलाया था।

ऐसे उदाहरण अत्यन्त अद्भुत तथा विलक्षम जरूर हैं, लेकिन इनका वैज्ञानिक कारण यह है कि अत्यधिक ममता व प्रेम प्रदर्शित करने, बारम्बार स्तनों पर निरन्तर ध्यान करने, उनमें उत्तेजना उत्पन्न करने, बच्चे को वक्षस्थल से बार-बार लगाने और उसके मुँह में स्तन अग्र को देने से हब्शी पुरुषों, नव-युपतियों व वृद्धा महिलाओं के स्तनों से भी दूध उतरने लगता हैं। इस मृत्युलोक में जितने भी स्तनधारी प्राणी हैं, उनमें से केवल मानव जाति की अनेक नारियाँ ही ऐसी हैं, जिन्हें शिकायत है कि उनके स्तनों से दूध नहीं उतरता और वे अपने बच्चों को बोतल थमा देती हैं। ध्यान रहे कि बोतल किसी समस्या का समाधान नहीं, मानसिक तनाव की दुखद परिणति है।

प्रकृति व वनस्पतियों के अधिक निकट रहने-बसने वाली ग्रामीण अंचलों की महिलाएँ भी अन्य स्तनधारी प्राणियों की भाँति दूध न उतरने सम्बन्धी बीमारी से अनभिज्ञ रहती हैं । वे इससे बखूबी परिचित हैं कि भैंस,गाय, भेड़, बकरी वगैरह के समान कुछ एक महिलाओं के स्तनों में भी आवश्यकता से अधिक दूध बनता है, जो क्रमशः अन्य मानव शिशु के अधिकाधिक काम आ सकते हैं / आते हैं । संभव है किसी शहरी महिला के स्तन से एक-आध सप्ताह दूध नहीं उतरता हो, लेकिन महीनों दूध न उतरे, यह स्तनपान कराने कराने सम्बन्धी तथाकथित झंझटों से मुक्ति पाने का एक बहाना मात्र है। दूध न उतरना किसी भी दृष्टिकोण से लाइलाज अथवा असाध्य रोग नहीं।

निःसंदेह नगरीह रहन-सहन के अप्राकृतिक ढंग, वायु-प्रदूषण मिलावटी भोजन इत्यादि के कारण नगर नगर-निवासी अनेक माताओं का दूध अपेक्षाकृत कम उतरता है, जिससे बच्चे का पेट नहीं भरता । कर्मचारी-अधिकारी व मजदूर महिलाओं को अपे बच्चों से काफी देर तक अलग रहना पड़ता है। फलतः उनके भी दूध क्रमशः कम उतरने लगता है। माता का स्वास्थ्य अच्छा न हो, अजीर्ण अथवा कोई अन्य रोग हो, अत्यधिक या बहुत कम खाने से भी दूध कम बनता है। बढ़ती उम्र के साथ-साथ दूध का बनना भी क्रमशः कम होता जाता है। इन सब कारणों के अतिरिक्त अन्य अनेक कारणों से माता के स्तन-अग्रों में दूध आना कम होता जाता है। अन्ततः कभी-कभी बन्द भी हो जाता है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार अग्रांकित विभिन्न औषधियों के सेवन करने मात्रसे यह व्याधि दूर हो जाती है।
(क)आयुर्वेदिक औषधि
(1) साधारणतया प्राकृतिक रहन-सहन, प्रसन्न चित्त, निर्मल व शुद्ध जलवायु का भी दूध पर प्रभाव पड़ता है। भोजन मे पूर्णतः सुतुलित पोषक व पौष्टिक खाद्य पदार्थ लेना चाहिए। दूध भी खबूब पीना चाहिए । खासकर मोटी महिलाओं को अपने आहार में घी कम कर देना चाहिए इसके अलावा कुछ व्यायाम भी अवश्य करना चाहिए। यदि माता का स्वास्थ्य अच्छा हो और दूध की कमी रोग के कारण न हो और सिर्फ दूध उतरता न हो, तो समझना चाहिए कि छोटा बाल़क दूध अच्छी तरह से खींच सकने में असमर्थ है। इस स्थिति में अपने स्वयं के या परिवार अथवा कुटुम्ब के अन्य कुछ बड़े बच्चे को कुछ समय तक पहले दूध पिलाना चाहिए, इससे दूध उतरने लगेगा।
(2)अरंड (एरंड या रेंड अथवा रेंडी) के पत्तों को गरम करके छाती पर बाँधने से दूध उतरने लगता है।
(3)अरंड के पत्तों को पानी में खूब औटाकर उस पानी में कपड़ा भिगोकर छाती पर रखने से दूध उतर आता है।
(4) जिन महिलाओं के स्तनों से दूध बिलकुल नहीं निकलता हो,तो उन्हें सफेद जीरा के साथ दूध लेना चाहिए। इससे दूध आने लगता है।
(5) सफेद जीरा और साँठी चावल दूध में पका कर पीने से स्तनों में दूध बढ़ जाता है।
(6) पीपर का पूर्ण दूध के साथ लेने से भी लाभ होता है।
(7) सोमवल्ली का अर्क सेवन करने से भी फायदा होता है।
(8) शतावर दूध में पीसकर पीने से भी लाभ होता है।
(9) विदारी कंद का रस पीने से फायदा होता है।

(10) “पूर्ववज्जीवकाद्यं च पंचमूलं प्रलेपनम्।
स्तनयोः संविधातव्यं सुखोष्णं स्तन्यशोधनम्।।”
-चरक संहिता।
अर्थात जीवनीयदशक (जीवकाद्य गण) और बृहत्पंचमूल स्तनों पर कुनकुना-गरम लेप देना चाहिए और शष्क होने पर लेप को धोकर दूध दूह लेना चाहिए। ऐसा बारम्बार करने से दूध का रूक्षता दोश हट जाता है।
(11)“स्त्रिग्धक्षीरा दारूमुसतपाठा : पिष्ट्वा सुखम्बुना।
पीत्वा ससैन्धवाः क्षिप्र क्षीरशुद्धिमवाप्रुयात्।।”
-चरक संहिता।
अर्थात जिसका दूध अतिस्त्रिग्ध हो वह देवदारू, मोथा, पाठा, इनके कल्क में किंचित सैन्धानमक मिलाकर कोसे जल से पीवे। इससे दूध शीघ्र शुद्ध हो जाता है।
(12)“त्रायमाणामिता निम्बपटोलत्रिफलाश्रुतम्।
गुरुक्षीरा पिबेदाशु स्तन्यदोषविशुद्धये।।”

-चक संहिता।
अर्थात जिस महिला का दूध गुरु हो वह त्रायमाण, गिलोय, नीं की छाल, पटोलपत्र, त्रिफला, इनका क्काथ दूध के दोष की शीघ्र शुद्धि के लिए पीवे।
(ख) होमियोपैथिक औषधि
(1) कैलकेरिया फॉस-3
जिन महिलाओं को पहले प्रसव में ही दूध कम उतरा हो उन्हें दूसरा प्रसव होने के 2-3 माह पूर्व से ही कैलकेरिया फॉस-3 की 5-5 गोलियाँ दिन में 3 बार चूस कर सेवन करना प्रारम्भ कर देना चाहिए। इससे प्रसव के बाद पर्याप्त मात्रा में दूध उतरने लगेगा।
(2)बोरेक्स-30
जिन महिलाओं का दूध पतला हो,दूध का स्वाद अच्छा न होने के कारम बच्चा दूध पीना न चाहे, तो बोरेक्स-30 की 3 गोलियाँ दिन में एक बार सात दिन तक लेने से फायदा होता है। पहले प्रसव काल में ऐसी ही स्थिति रही हो, तो दूसरे प्रसव के पूर्व 8 वें 9वें महीने में इसका सेवन करने से यह शिकायत पुनः नहीं होती।
(3)सेबल सेरूलेटा-क्यू मदरटिंचर)
दूध को बढ़ाने के लिए यह औषधि अत्यधिक गुणकारी है। जिन महिलाओं के स्तन पूर्ण विकसित व सुडौल न होकर सुकुड़े हुए व छोटे हों, उनको विकसित, पुष्ट और सुडौल करने मे भी यह औषधि अच्छा काम करती है और दूध की मात्रा बढ़ाती है। सेवन सेरूलेटाक्यू को2 चम्मच पानी में 5-7 बूंद टपकाकर दिन में 3-4 बार पीना चाहिए।
(4)रेसीनस-न्यू-1 (मदर टिंचर-क्यू)
दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए यह दवा अत्यन्त महत्पूर्ण है। जिन महिलाओं को चक्कर आता हो, मुँह सूखता अथवा प्यास अधिक लगती हो, पतले दस्त तथा उल्टियाँ होती हों, पेट में दर्द होता हो, कमजोरी हो और दूध की मात्रा में कमी हो, तो रेसीनस-क्यू-1 अत्यधिक गुमकारी है। मुँह साफ करके इस दवा की दो बूंद जीभ पर टपका लें या फिर2 चम्मच पानी में इसकी 2 बूंद टपका कर दिन में तीन बार पिएँ।
(5)ब्रायोनिया-30
कड़ापन अथवा सूजन आ जाने के कारण स्तनों से दूध कम उतरे, तो ब्रायोनिया -30 का सेवन करना चाहिए। स्तनों के जरा से हिलने-डुलने पर कष्ट होना इस व्याधि का प्रमुख लक्षण है। यह लक्षम ज्ञात होने पर 3 दिन तक दिन में तीन बार 3-3 गोलियाँ मुँह में रखकर चूसना चाहिए।
(6)स्टिक्टा -30
नात बंद हो, साइनस की तकलीफ हो, हल्का बुखार हो और दूध क आता हो तो पहलेदिन स्टिक्टा-30 की 3-3 गोलियाँ 12-12 घंटे के अन्तराल में 3 खुराक लें और तीसरे दिन सुबह स्टिक्कटा-20 की 3 गोलियों की एक खुराक लें। इससे दूध की मात्रा तो बढ़ेगी ही, इसके अलावा अन्य तकलीफें भी दूर हो जाएँगी।
(7) पल्सेटिला -30
स्तनों में इस कदर दर्द हो कि शिशु के दूध पीन पर अत्यधिक कष्ट से माता की आँखों से आँसू निकल पड़े, दूध बहुत कम हो जाए, तो पल्सेटिला-30 अत्यन्त उपयोगी दवा है। महिला को प्यास कम लगना, अन्यों से सहानुभूति पाने की इच्छा रखना, अपना दुःख दूसरों को बताते समय रोने लगना इत्यादि इस व्याधि के प्रमुख लक्षण हैं। इन लक्षणों के उजागर होने पर इसकी 3-3 गोलियां तीन दिन तक लेना ही काफी होगा।
(8) कैमोमिला -30
अगर शोक। चिड़चिड़ाहट अथवा क्रोध के कारण दूद सूक जाए या फिर कम हो जाए, तो कैमोमिला-30 के सेवन से फायदा होता है। इसकी 3-3 गोलियाँ सुबह-शाम चूसने से 5-6 दिन में ही फायदा होने लगता है।
(9) कैलकेरिया कार्ब -30
प्रसूता को वर्षा के मौसम में ठण्ड लग जान से दूध कम हो जाए तो कैलकेरिया कार्व-30 की तीन खुराक 3-3 गोली 12-12 घम्टे के अन्तर से 3-3गोली दिन में तीन खराक लेने से फादा होता ।
(10) डलकामारा -30

प्रसूता को वर्षा के मौसम में ठण्ड लग जान से दूध कम हो जाने से दूध कम हो जाए, तो डलकामारा -30 की तीन खुराक 3-3 गोलियाँ 12-12 घण्टे के अन्तर से लेने पर यह बीमारी दूर हो जाती है।
(11)मर्क सोल-30
माता को डीसेंट्री को अथवा पहे हो चुकी हो, दू्ध पतला या कम मात्रा में हो तो मर्क सोल-30 को 12-12 घण्टे के अन्तर से 3-3 गोलियाँ की तीन खुराक लेने से फायदा होता है।
(12) एकोनाइट -30
प्रसव उपरान्त की बार प्रसूता को स्तन्य ज्वर हो जाता है। इससे दूध दूषित हो जाता है। ऐसी स्थिति में एकोनाइट-30 की 3-3 गोलियाँ दिन में तीन खुराक लेने से फायदा होता हैं।
(13) रियूम-3
दूध का स्वाद कड़वा अथवा खट्टा हो, रंग पीला हो, तो रियूम-3 पहले दिन 3-3 गोलियों की तीन खुराक लें। लाभ न हो तो रियूम-6 दूसरे दिन3-3 गोलियों की तीन खुराक लेने से लाभ होता है।
(14) आर्निका मदर टिंचर लोशन
बच्चे की कोहनी अथवा सिर टकरा जाने, अन्य किसी चीज से मसला जाने, रगड़ खाने या फिर चोट लगने से स्तनों में दर्द हो तो आर्निया मदर टिंचर के लोशन से स्तनों को धोने से आराम होता है। दूध पिलान से पहले स्तनों को धो-पोंछकर ही बच्चे को दूध पिलाना चाहिए।
(15)केलेन्डुला मदर टिंचर
कई बार कूचों और चूचुकों में काफी दर्द होता है। फलतः बच्चे के मुँह में स्तन देना मुश्किल हो जाता है। केलेन्डुला मदर टिंचर की 20-25 बूंद आधा कप पानी में घोलकर स्तनों को धोने से आराम मिलता है। दूध पिलाने से पूर्व अनिवार्यतः स्तनों को धो लें। उसके बाद ही बच्चे को दूध पिलाएँ।
सभी दवाओं के सेवन करने से एक घंटे पूर्व और एक घण्टे पश्चात कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए। गोलियों को पानी के साथ नहीं लेना चाहिए, बल्कि शीशी से एक साफ कागज पर गोलियाँ लेकर मुँह डाल कर चूसना चाहिए।

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