शनिवार, 14 जून 2008

दूध के गुण


आचार्य चरक ने लिखा है कि-

“उपवासाध्यवभार स्त्री मारुतातपकर्मभिः ।
क्लान्तानामनुपानार्थ पथः पथ्यंयथामृतम्।।”
अर्थात उपवास, मार्ग से थके हुए, बहुत भाषण किये हुए, स्त्री भोग के अनन्तर, वायु, धूप तथा अन्य कामों से थके हुए मनुष्य को दूध पीना अमृत के समान गुणकारी है। एक सुप्रसिद्ध अँग्रेजी विदूषी श्रीमती एला व्हीलर विलकॉक्स का कथन है कि “हृदय से संबंध रखने वाले रोगों कोछोड़कर कोई शारीरिक व्याधि ऐसी नहीं है जो आग्रहपूर्वक दूध के सेवन से न मिट जाय । यहाँ तक कि राजयक्षमा (क्षय अथवा तपेदिक) और विद्रधि (कैंसर) जैसे भयंकर रोग भी दूध की चिकित्सा से चले जाते हैं।” वस्तुतः दूध व्याधि-मात्र को दूर करने वाला है। दूध के माध्यम से सभी प्रकार की शारीरिक व्याधियों को दूर करने वाली विधि का ही दूसरा नाम “दूग्ध चिकित्सा” है। वर्तमान विशअव के कई देशों में इसी दुग्ध चिकिस्सा के माध्यम से अनेक असाध्य रोगी चंगे किये जा रहे हैं। एक ही देश अमरीका में दूध का सेवन करके रोगों को मिटाने वाली अनेक संस्थाएं हैं। इन संस्थाओं में जाने वाले रोगियों को चाहे जो भी रोग हो, उनके लिए एक मात्र इलाज दूध ही होता है। जब तक रोगी बिल्कुल अच्छा नहीं हो जाता , तब तक वहाँ रोगियों को दूध- केवल दूध ही दिया जाता है। इसी चिकित्सा के माध्यम से अनेक रोगी इन संस्थाओं में नित्य स्वस्थ किये जाते हैं। यूरोप में बल्गारिया नामक एक देश है। इस देश के निवासियां का मुख्य भोजन दूध है। अतएव यूरोप के सभी देशों के निवासियों की अपेक्षा बल्गारिया देश के निवासी अधिक आयु वाले होते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार यहाँ एक हजार पीछे एक व्यक्ति की आयु लगभग 100 वर्ष होती है, लेकिन कब ? जब आजीवन दुग्धाहार लेते हैं । इसका आशय यह नही कि बल्गारिया के बच्चे अपनी माता का दूध पीते ही नहीं। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भोज न संबंधी अनेक प्रयोग किये हैं। उन्होंने अपने लिए बकरी का दूध तथा फल ही सर्वोत्तम पाया । वे दूध को छोड़ देना चाहते थे, लेकिन उनको कोई ऐसी चीज न मिल सकी, जिसको वे दूध के बदले में ले सकें । इस दूध और फलाहार का गाँधीजी पर यह असर पड़ा कि 79 वें वर्ष की वृद्धावस्ता में भी अधिकांश नवयुवकों से अधिक कार्यक्षमता उनमें थी। माना कि उनके आत्मबल और उनकी मानसिक स्थिति को दूध ठीक रखता था, पर हम यह स्वीकार नहीं कर सकते कि उनके सात्विक भोजन का प्रभाव उनकी आत्मा के विकास मन की शुद्धता और शारीरिक स्वास्थ्य पर नहीं पड़ा है या फिर उन्होंने स्तपनान नहीं किया है।
आयुर्वेद ने दूध को वाजीकरण माना है। दूध के सेवन से शरीर में विचित्र कोमलता आती है, कान्ति बढ़ती है, स्मृति और मेघा शक्ति जागृत होती है। साथ ही शरीर हृदय-पुष्ट और बलवान भी बनता है। दूध संसारा का अमृत है । संस्रा का कोई भी पदार्थ इसकी बराबरी नहीं कर सकता । बालकों को जीवन देने वाला, निर्बलों को बल देने वाला ,जवानों की जवानी कायम रखने वाला, बूढ़ों का बुढ़ापा दूर करने वाला, रोगियों का रोग रहण करनेवाला,तन्दुरूस्त लोगों को मजबूत तथा पुष्ट बनाने वाला एवं कामियों की इचिछा पूर्ति करने वाला दूध से बढ़कर संसार में दूसरी चीज नहीं है।
तन,मन और धन को स्वस्थ्य और सुदृढ़ रखने के लिए उत्कृष्ट भोजन ही सर्वोत्तम साधन है। जैसा निकृष्ट अथवा उत्कृष्ट हमारा भोजन होगा, वैसा ही निकृष्ट अथवा उत्कृष्ट हमारा स्वास्थ्य होगा । तदनुसार हमारे मानसिक स्वास्थ्य का भी गठन होगा। जिस तरह की पुम्यमय या पापमय जीविका होगी, हमारी धनराशि उसी दिशा में ही प्रवाहित होगी। भोजन में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट आवश्यक है। तथा खनिज लवण और विटामिन अनिवार्य । हमारे भोजन में चाहे-जितने ऊँचे दरजे की प्रोटीन (माँस बनाने वाला तत्व ) और कार्बोहाइड्रेट (माड़ी व चीनी वाले पदार्थ) क्यों न हों, यदि उस भोजन में खनिज लवण और विटामिन की कमी है, तो हमें उस बोजन को संतुलित भोजन नहीं कह सकते। निःसंदेह दूध प्रोटीन और कार्वोहाइड्रेट की दृष्टि से सर्वोत्तम पदार्थों में से ही है, इसके अलावा इसमें खनिज लवण भी पर्याप्त मात्रा में है और विटामिन ए, बी,सी,डी, एवं ई की भी कमी नहीं नही है । अतएव सारांश में हम यह कह सकते हैं कि किसी भी प्रकार का भोजन हो, यदि उसमें दूध शामिल नहीं है,तो उससे हमारा पेट भले ही भर जावे, वह हमें पूर्णतः स्वस्थ कभी नहीं रख सकता है। चाहे कोई भी अवस्था हो, नीरोग्यावस्था, रोगावस्था, वृद्धावस्था, युवावस्था या शिशु अवस्था, सबके लिए यथायोग्य दूध आवश्यक है।

1 टिप्पणी:

yeseanagabriele ने कहा…

Pincode Casino in Pincode - Mapyro
Address, Pincode Casino, Pincode 이천 출장샵 Casino, Pincode Casino, 사천 출장안마 Pincode Casino, Pincode Casino, Pincode Casino, 과천 출장안마 Pincode Casino, 세종특별자치 출장안마 Pincode Casino, Pincode Casino, 군산 출장안마 Pincode Casino, Pincode