शनिवार, 14 जून 2008

दूध का विश्लेशण


स्तनपायी जीवों की मादा के स्तनों से निकलने वाला सफेद रंग का तरल पदार्थ जिसे उनके छोटे बच्चे पीते हैं, मय, दुध अथवा दूध कहलाता है। दुनिया में जितने भी पौष्टिक पदार्थ हैं, साथ ही उनमें जितने भी पोषक तत्व हैं, लगभग वे सभी पोषक तत्व किसी न किसी मात्रा में दूध में विद्यमान हैं। वर्तमान विश्व में अति सुगमता के साथ पचने वाले तथा शरीर में अतिशीघ्र पुष्टि लाने वाले दूध के अलावा अन्य कोई सम्पूर्ण एवं सन्तुलित आहार नहीं है। माता के स्तन से दूध पीने वाले जितने भी प्राणी हैं, वे सभी दूध को भोजन के रूप में लेने से अत्यन्त आश्चर्य में डालने वाली शरीर वृद्धि को प्राप्त होते हैं। प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता ? दूध संसार का अमृत है। आदिकाल से लोग दूध की उपयोगिता से परिचित हैं। दुनिया का कोई भी पदार्थ इसकी बराबरी नहीं कर सकता। वैसे यह बात वैज्ञानिक आधार पर भी प्रमाणित हो चुकी है।

समस्त पुशुओं तथा मनुष्य का दूध उनके अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिे प्रकृति ने बनाया है और उन्हीं पर उन पशुओं तथा मनुष्य के बच्चे पलते, बढ़ते व अपने सबी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। दूसरे शब्दों में, प्रकृति की ओर से ही दूध में वे सभी तत्व भर दिये गये हैं, जिनकी आवश्यकता शरीर के समुचित रूप से पलने, बढ़ने व नीरोग रहने के लिए अनिवार्य है। जितने गुण अथवा तत्व उत्तम से उत्तम भोजन में होने चाहिए, वे सभी दूध में विद्यमान रहते हैं। अतएव स्पष्ट है कि दूध स्वयमेव एक पूर्ण भोजन है।
मनुष्य और पशुओं का दूध एक सा नहीं होता। जानवरों की आवश्यकतामुसार उनके दूध के पौष्टिक तत्वों में अन्तर होता है । किसी के दूध में प्रत्यामिन अधिक होता है, किसी में वसा, तो किसी में चीनी। इन तत्वों की भिन्नता के कारम दूध की पाचकता और आरोग्यता में अन्तर आ जाता है। विभिन्न प्रमुख जीवधारियों के दूध की व्याख्या निम्नांकित है-
(1) हथिनी का दूध
(2) ऊँटनी का दूध
(3) घोडी का दूध
(4) गदही का दूध
(5) भेड़ का दूध
(6) भैंस का दूध
(7) गाय का दूध
(8) बकरी का दूध
(9) महिला का दूध
(1) हथिनी का दूध
हथिनी का दूध बहुत मुश्किल से पचने वाला तथा अत्यधिक भारी होता है। यह बल वृद्धि और शरीर को दृढ़ करने वाला भी है। यह साधारण लोगों के काम की चीज नहीं है, पहलवानों और अत्यधिक परिश्रम करने वालों के लिए ही हितकर है। यह वात को बढ़ाता और पित्त को नष्ट करता है। यह स्वाद में मीठा होता है।
(2) ऊँटनी का दूध
ऊँटनी का दूध रुक्ष (चिकनाई रहित) व हलका होता है, लेकिन दस्तावर भी है। यह
गरम है और अग्नि को दीप्त करता है। यह कफ, वात कोढ़, कृमि (पेट के कीड़े), आनाह (वायु के कारम पेट फूटना), सूजन और उदर रोगों को दूर करता है।यह स्वाद में नमकीन-मीठा होता है।
(3) घोड़ी का दूध
घोड़ी का दूध हलका रुक्ष (चिकनाई रहित) और गरम होता है। यह शोष को शान्त और शरीर को दृढ़ करता है। यह बल को बढ़ाता, श्वास और वायुरोग, शाखागत वायु रोग अर्थात हाथ में होने वाले वाय रोगों को दूर करता है। यह स्वाद में खट्टा नमकीन-मीठा होता है।
(4) गदही का दूध
गदही का दूध रुचि वर्द्धक और अग्नि को बढ़ाने वाला होता है। यह बाल रोगों को दूर करता है। खासकर बच्चों के सूखारोग में लाभदायक होता है और बच्चों के मुँह पकने में इसको पिलाने से बहरुत जल्द लाभ होता है। इससे वाय, शाखावायु, श्वास, कफ और खाँसी आदि रोग नष्ट होते हैं। यह स्वाद में खट्टा-नमकीन होता है।
(5) भेड़ का दूध
भेड़ का दूध तृप्तिकारक, देर से पचने वाला तथा भारी होता है। यह लवण और मधुरस युक्त, चिकना और गरम होता है। यह हिचकी, श्वास,कफ, पित्त और वीर्य को बढ़ाता है। यह हृदय के रोगों में नुकसानदेह होता है। यह स्वाद में मिठा होता है।
(6) भैंस का दूध
भैंस का दूध चिकना, देर से पचने वाला, वीर्य को बढा़ने वाला और बलवर्द्धक होता है। यह शीतवीर्य होता है। यह शीतवीर्य है। इससे नींद आती है। यह भीतरी स्त्रोतों (नस के छेदों को) को बन्द करता है या उनके अन्दर जमता है और मेंदाग्नि पेदा करात है। जिनकी अग्नि बलवान हो अथवा जो बलनान हों उनके लिए यह अत्यन्त हितकारी है। किसी भी हालत में यह रोगियों के लिए लाभदायक नहीं होता। स्वाद में यह मिठा होता है।
(7) गाय का दूध
गाय का दूध मीठा, शीतल, मृदु (स्पर्श में कोमल), स्त्रिग्ध (चिकनाई), श्लक्षण (चिकना), गाढ़ा लेसदार, भारी (देर से पचने वाला), मन्द, पवित्र इन दस गुणों से युक्त होता है। इन दस गुणों के संयोग के कारण यह शरीर के ओज को बढ़ाता है तथा जीवन दायक पदार्थों में अत्यन्त श्रेष्ठ है। यह रसायन है अर्थात यह ज्वर, रक्तपित्त और वायु को शीत करता है। यह बुढ़ापे को जल्द आने नहीं देता और बुढ़ापे के सम्पूर्ण रोगों को दूर करता है। इसके उपयोग से जच्चा का दूध भी बढ़ता है।
(8) बकरी का दूध
बकरी का दूध में एक तरह की हीक आती है। यह स्वाद में कसैला मीठा होता है। बकरी कड़वी और तीखी वनस्पतियों अपेक्षाकृत अधिक खाती है, पानी कम पीती है तथा चारा ढूँढ़ने में उसे परिश्रम भी अधिक करना पड़ता है। फलतः बकरी का दूध त्रिदोषनाशक होता है अर्थात वात, कफ और पित्त की शांति करता है। यह पचने में हलका, अग्नि को दीप्त करने वाला और ग्राही (दस्तों को बाँधने वाला) है। यह क्षय, बवासीर, अतिसार, चक्कर आना, और ज्वर को नष्ट करता है।यह ठंडा होने के कारण रक्त पित्त (नाक-मुँह आदि से खून आना) में लाभदायक होता है। इसमें कैश्लियम और विटामिन पूर्णरूप मे मिलते हैं। रोगी, छोटे व कमजोर बच्चो के लिए बकरी का दूध अमृत के समान गुणकारी होता है।
(9) महिला का दूध
महिला का दूध हलका, चिकना, पुष्टिकाकर, जीवन दायक, वात-पित्त नाशक, पथ्य और ठंडा है। यह अग्नि को दीप्त करता है। प्रलाप(अनाप-शनाप बातचीत अथवा पागलों के समान कही हुई व्यर्थ की बकवास) चक्कर आना, मूर्च्छा, जलन-तपन और प्यास से व्याकुल मनुष्य को यदि महिला का दूध पिलाया जाय, तो ये सब रोग दूर हो जाते हैं। यह आँख में डालने से आँख के दर्द को दूर करता है। आँख में यदि चोट लग गई हो, तो भी आँख में डालने से लाभ होता है। यदि नाक से खून जाता हो, तो इसके नास लेने बंद हो जाता हैं। इस प्रकार महिला का दूध मानव जाति के लिए अमृततुल्य है।
डब्बे का सूखा दूध 13.69 15.40 21.90 5.39 12.10
डब्बे का गाढ़ा दूध 5.47 11.10 14.31 0.31 63.40
भैंस का दूध 3.50 7.50 4.74 0.71 82.55
गाय का दूध 3.40 3.73 4.70 0.71 87.80
बकरी का दूध 3.79 4.34 3.78 0.65 86.85
गदही का दूध 3.1 3.74 6.37 0.30 87.85
महिला का दूध 2.01 3.74 4.74 0.30 85.85

इसी तरह दूध के विभिन्न कीमियाई तत्व पोटाश, सोडा,चूना, लोहा, क्लोरिन, फास्फोरिक के अनुक्रम निम्नानुसार प्रतिशत में है -
कुतिया 0.131 0.054 0.338 0.0010 0.140 0.364
भेड़ 0.216 0.039 0.277 0.0091 0.068 0.269
गाय 0.177 0.059 0.161 0.0022 0.126 0.219
घोड़ी 0.095 0.013 0.114 0.0014 0.039 0.121
महिला 0.075 0.024 0.045 0.0006 0.043 0,056

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