शनिवार, 14 जून 2008

दूध के अवगुण


दूध सर्वोत्तम भोजन है । दूध से भोजन का कमी पूरी हो जाती है। दूध मस्तिक को सतेज व परिष्कृत रखता है। दूध रोग दूर करने वाला तथा रोग निवारण शक्ति बढ़ाने वाला है। मगर ये सब गुण शुद्ध एवं असली दूध में ही हैं। ताजा अथवा धारोष्ण दूध ही सर्वोत्कृष्ट होता है। डेरी वाले तथा ग्वाले जो दूध देते हैं, उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता । आज लोगों की रुचि कुत्ता-बिल्ली पालने की तरफ अधिक हो गी है। वे यथाशक्ति मोपेड, मोटर सायकल, स्कूटर, जीप एवं कार आसानी से रख सकते हैं, किन्तु बकरी, गाय व भैंस पालने का नाम भी नहीं लेते । इसमें उन्हें झंझट मालूम होती है। नाहक परेशानी मोल कौन ले। इन लोगों ने ग्वाले व डेरियों से अपे और अपने बच्चों का जीवन बीमा कर लिया है।

हमारे देश में गाय-भैंयों की जितनी दुर्दशा आज हो रही है, वैसी कभी नहीं हुई थी। विदेशों में इस तरफ लोगों का ध्यान बहुत अधिक है। खासकर लोग गाय पालने की ओर विशेष रुचि रखते हैं। हमारे यहाँ गाय पालना भी निरुत्साहपूर्ण है, इसमे कोई विशेष नवीनता नहीं। पुराने ख्याल के ग्वाले अशिक्षित व अनुभवहीन हैं। वे जहाँ गायों को रखते हैं (गौशाला), वह जगह बहुत ही गन्दी होती है, पेशाब व गोबर से तर रहती है। गाय का थन और पीछे का लगभग आधा हिस्सा पेशाब व गोबर से सना रहता है। आमतौर पर गाय दूहने वाले ग्वाले के हाथ भी गन्दे रहते हैं और बर्तन तो गन्दा रहता ही है। इतना ही नहीं, अहीरों द्वारा बाजारू दूध में गन्दा पानी भी मिलाया जाता है, जिसमें कभी-कभार कीड़े-मकोड़े के साथ-साथ छोटी-छोटी मछलियाँ भी पाई गी हैं।

गाय जितनी ही स्वस्थ होगी, उतना ही स्वस्थ उसका दूध होगा । रोगी गाय का दूध पीकर आदमी रोगी हो जाता है, तो बच्चो का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। गाय पूर्णतः नीरोग होना चाहिए और उसके थन में किसी तरह का घाव नहीं होना चाहिए। जिस जगह गाय बाँधी जाय, वह बिल्कुल साथ सुथरी होना चाहिए। उसका फर्श पक्का हो, तो अपेक्षाकृत बहुत अच्छी बात है। मल-मूत्र गोशाला से काफी दूर रखना चाहिए तथा उस पर तुरन्त मिट्टी छिड़क दी जानी चाहिए, ताकि मक्खियाँ बढ़ने न पावें। मच्छरमारक दवाइयों का प्रयोग भी करना चाहिए । गोशाला की दीवारें, छत व उसके आसपास किसी प्रकार की गन्दगी नहीं रहनी चाहिए। जहाँ गाय बैठे, वहाँ पुआल बिछा दिया जाय और वह रोजाना बदल देना चाहिए।

गौशाला और गाय-भैंस के पेट, स्तन और जाँघ स्वच्छ और भीगे कपड़े से पोंछ लेना चाहिए। दूध दूहने वाले आदमी को भी स्वच्छ कपड़े पहनने चाहिए और अपे हाथ-पाँव अच्छी तरह धो लेना चाहिए। ध्यान रहे कि उसे कोई छूत रोग न हो। दूध दूहने के काम में लाये जाने वाले बर्तन को अच्छी तरह माँजना और स्वच्छ अथवा गर्म जल से धोना चाहिए। इसके लिए बटलोई का प्रयोग करना चाहिए, बाल्टी का नहीं, क्योंकि किनारे वाले जोड़ों में मैल बैठ जाता है। फलस्वरूप दूध खराब हो जाता है। दूध छानकर उपयोग करना चाहिए। दूध के बर्तन को ढाँक कर रखना चाहिए । यदि अधिक देर तक दूध को कच्चा रखना हो, तो दूध का बर्तन बर्फ में रखना चाहिए। आम तौर पर दूध के सम्बन्ध में इतनी अधिक सावधानी नहीं बरती जाती, जिसका दुष्परिणाम बच्चों को भुगतना पड़ता है।

दूध की पहली धार में रोगों के काफी कीटाणु रहते हैं। अकुशल ग्वाले गाय दूहते समय न तो दूध की पहली धार को अन्यत्र फेंकते हैं और न ही बड़ों के पीने के पूर्व अथवा पश्चात् थन को धोते हैं। गायों के निवास, दुहे जानेवाले स्थान, ग्वाले के हाथ, बर्तन, गन्दे पानी की गन्दगी तथा दूध को अधइक देर कर कच्चा या खुला रखने की गन्दगी के कारण धूध कीटाणुओं का घर बन जाता है। वैसे तो दूध बहुत अच्छी चीज है, लेकिन फिर भी इससे अधिक हानि पहुँचाने वाला पदार्थ भी कोई नहीं है। जिस प्रकार हमें दूध मीठा और प्यारा लगता है। फलतः समें कीटाणु बड़े मजे से पलते-पनपते, फूलते व फूलते हैं। कीटाणुओं के भय से डॉक्टर लोग दूध को अनेक प्रकार से उबाल लेने की सलाह देते हैं, किन्तु इससे दूध के गुण व विटामिन कम हो जाते हैं तथा उसका चूना (कैल्शियम) अपचनशील हो जाता है। छोटे-बच्चे जो अधिकतर ऊपर के दूध पर पलते हैं, उपर्युक्तानुसार अशुद्ध, खराब अथवा गन्दगी भरे दूध के कारण ही बीमार पड़ते और मरते हैं। इसलिए स्वच्छता के नियमों का यथासम्भव पालन करना नितांत आवश्यक है।

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